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Showing posts from November, 2010

मौत - देश रत्न (Desh Ratna)

बीती रात कोई मर गया शायद, उजाला बस्ती में कफ़न का कार गया शायद . मौत उसके पीछे ना पड़ी थी, बेचारा ज़िन्दगी से डर गया शायद. नुमाइश को यूँ तो एक जिस्म रक्खा था, सुबह त़क वो भी सड़ गया शायाद. थककर ज़िन्दगी के रेलम-पेले से, सफ़ेद काप्दों में वो संवर गया शायद.. year - 2003 Malviya Nagar delhi सारे शेर मेरी तरह आवारा हैं....कद्रदानों से मुआफी की तलब है..

एक और गुस्ताख़ी - देश रत्न (Desh Ratna)

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जब तुने बनाया हुस्न तो ये दिल बनाया क्यूँ? मेरे रोशन किये चरागा ने मेरा घर जलाया क्यूँ? रौशनी के जशन में उजालों का सबब उम्दा, रौशनी की बारात में तीरगी को बुलाया क्यूँ? अन्धेरें में सक्सियत गुमनाम ही सही, सूरज ने फिर उगने का वादा निभाया क्यूँ? उसे नागुज़र थी हमारी सोहरत शायद, सेहरा की भीगी रेत से हवा ने मेरा नाम मिटाया क्यूँ?

हूंकार - देश रत्न (Desh Ratna

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__हूंकार पुनः यज्ञ का आह्वान करो, समव्येत स्वरों में गान करो, रौद्र रूप का ध्यान करो, जौहर करती माताओं के जलते बदन का मान करो, पाञ्चजन्य का हुंकार करो, तुणीर का झंकार करो, माता की कोख पे प्रश्न चिन्ह उठा है वीर पुत्रों बलिदान करो! पुरुषार्थ बांशुरी में छीण हो गया वज्र उर्वशी में लीन हो गया मधुघट के ऐ मधुमारों देखो राष्ट्र ध्वज है हीन हुआ अरे छोड़ों बापू की बात पुरानी याद करो भगत जवानी वो शिवाजी अमर बलिदानी सुभाष आज़ाद की अमर कहानी माता की छाती से लगकर तुमने बचपन खेला है बहुत ज्यादा ख़ुशी हाँ कुछ ग़म भी तुमने झेला है अरे सिंहों अपना तेवर बदलो तेवर बदलो जेवर बदलो बदल डालो सब हाहाकारों से रणचंडी के धुआंधारों से तनमन अपना दान करो प्रलय का ऐसा घमासान करो दनुज दैत्य चीत्कार उठें राष्ट्र संख फिर हुँकार उठे पाषाणों में छिपी है आग स्वप्नों से तो अब तू जाग सिसक-सिसक कर रोती माता छेड़ कोई हाहाकारी राग. तेरे निंद्रा से मान घटा है माता का स्वाभिमान घटा है, कबसे कंचनी-कुमुदनी में खोया आज माता का वस्त्रमान हटा है. मुकुट शीश से उठा ले गए दनुज देखता रह गया तू नपुंशक मनुज थू-थू करता हूँ तुझपे थू-थू अब त

मर्यादा के वरदान के साथ कठोरता का अभिशाप -- Desh Ratna

लो आज मैंने तुम्हारा भी परित्याग कर दिया... मुझे मर्यादा के वरदान के साथ कठोरता का अभिशाप भी मिला है... November 9, 2010 at 1:10pm तुम्हें राम और रावण दोनों मुझमे ही नज़र आते थे....और रावण हमेशा मेरे राम पे हावी दीखता था.... और पूरी अयोध्या मर्यादा बन मेरे सामने खड़ी थी.. November 9, 2010 at 3:32pm