Ek Geet - Desh Ratna

बरसों की ये रीत रही है कान्धा देते बेटे,
बाप दे रहे कान्धा बेटे अर्थी पे हैं लेते,
मांग में सिन्दूर नहीं है कोई नहीं कुंवारी,
सबके सब सहमी खड़ी हैं पहने उजली साड़ी,

रोते नहीं हैं बच्चे अब ना आँखों में हैं पानी,
अब कैसे कहें हम तुमको ये कहानी.
देख रहे थे नेता सारे देख रही सरकार,
सरकारी अफसर खड़े थे थी हाथों में तलवार...(2 be contnd)

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