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Showing posts from January, 2011

मर्यादा - Desh Ratna

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लो आज मैंने तुम्हारा भी परित्याग कर दिया... मुझे मर्यादा के वरदान के साथ कठोरता का अभिशाप भी मिला है... November 9, 2010 at 1:10pm तुम्हें राम और रावण दोनों मुझमे ही नज़र आते थे....और रावण हमेशा मेरे राम पे हावी दीखता था.... और पूरी अयोध्या मर्यादा बन मेरे सामने खड़ी थी.. November 9, 2010 at 3:32pm

मेरे रोशन किये चरागा ने मेरा घर जलाया क्यूँ? - Desh Ratna

जब तुने बनाया हुस्न तो ये दिल बनाया क्यूँ? मेरे रोशन किये चरागा ने मेरा घर जलाया क्यूँ? रौशनी के जशन में उजालों का सबब उम्दा, रौशनी की बारात में तीरगी को बुलाया क्यूँ? अन्धेरें में सक्सियत गुमनाम ही सही, सूरज ने फिर उगने का वादा निभाया क्यूँ? उसे नागुज़र थी हमारी सोहरत शायद, सेहरा की भीगी रेत से हवा ने मेरा नाम मिटाया क्यूँ? (2003, Malviya Nagar)

Ek Geet - Desh Ratna

बरसों की ये रीत रही है कान्धा देते बेटे, बाप दे रहे कान्धा बेटे अर्थी पे हैं लेते, मांग में सिन्दूर नहीं है कोई नहीं कुंवारी, सबके सब सहमी खड़ी हैं पहने उजली साड़ी, रोते नहीं हैं बच्चे अब ना आँखों में हैं पानी, अब कैसे कहें हम तुमको ये कहानी. देख रहे थे नेता सारे देख रही सरकार, सरकारी अफसर खड़े थे थी हाथों में तलवार...(2 be contnd)

फुर्सते-ज़ीस्त में हर कोई बेवफा मिला - Desh Ratna

मेरी बावाफाई का मुझे ये सिला मिला, फुर्सते-ज़ीस्त में हर कोई बेवफा मिला. मेरे दर्देदिल को बीच रस्ते नीलाम कर, बता ऐय मेरे दोस्त तुझे क्या नफा मिला? रास्तों पे अंजुमन में और मस्जिदों में भी, जाने हर सक्श क्यूँ मुझे खफ़ा मिला . जाके कहदो वाईज़ से वो मनाएं अपनी ख़ैर, मुझे तो मैकदे में झूमता हुआ ख़ुदा मिला. अपने जनाज़े के लिए चार काँधे ढूंढता, मुझे हर सक्श से मेरा ही पता मिला .. (2001, Faraday House, Patna)

आ मैं एक नया गान लिखूं मगध का स्वाभिमान लिखूं -- Desh Ratna

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आ मैं एक नया गान लिखूं मगध का स्वाभिमान लिखूं चाणक्य का ऐलान चंद्रगुप की शान लिखूं अशोक का गौरव बुद्ध का निर्वाण लिखूं मुसलामानों की होली हिन्दू का रमजान लिखूं आ मैं एक नया गान लिखूं दिनकर की हुंकार लिखूं या उर्वसी का प्यार लिखूं मैय्या सीता का त्याग लिखूं या जनक का प्रताप लिखूं आ मैं एक नया गान लिखूं मगध का स्वाभिमान लिखूं (To be continued..) ____ आ मैं एक नया गान लिखूं, मगध का स्वाभिमान लिखूं... बिहार विधानसभा में सुशासन को अपना मत देकर एक नए स्वर्णिम समय का आलिंगन करते इस जनतंत्र को मेरा नमन... November 26, 2010 at 12:11pm)

धर्म युद्ध का संकल्प दोतरफा नहीं - मेरा है -- Desh Ratna

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आज फिर गांडीव थाम लिया है भुजाओं में मैंने, और पाञ्चजन्य अधरों से लगाने ही वाला हूँ, सुदर्शन भी मैं ही उठाऊंगा और कवच कुंडल की मांग भी मुझसे ही होगी अंगूठा भी मेरा ही कटेगा और रिक्त गुरुपद की भरपाई भी मैं ही करूंगा.. पर इस बार चक्रवियुह की रचना नहीं करने दूंगा किसी द्रोण को . और ना कोई शिखंडी का सहारा ले गंगापुत्र की हत्या कर पायेगा, ना किसी जयद्रथ का वध सूरज की किरणों का मोहताज़ बनेगा, और ना ही दुर्योधन के जंघाओं पे प्रहार कर कायरता का परिचय दूंगा.. धर्म युद्ध का संकल्प दोतरफा नहीं - मेरा है... (वर्ष की पहली रचना- देश रत्न