माँ के आँचल में संवर जाता हूँ - - (c) बख्त फ़क़ीरी "देश रत्न " "Desh Ratna

जब भी छुट्टियों में घर जाता हूँ
माँ के आँचल में संवर जाता हूँ

आँगन की तुलसी को करता हूँ सलाम
लपेट के माटी मैं निखर जाता हूँ.

भूख मिटती है बागीचे में आम से.
नहाने को सुबह नहर जाता हूँ.

शहर के दोस्त बस चैट पे मिलते,
गाँव में दुश्मनों के भी घर जाता हूँ.

लौटने का दिन जब होता है मुक़रर 
रोती है माँ और ठहर जाता हूँ.

बाबूजी दे देते हैं बटुआ निकाल कर.
बख्त तभी पूरा का पूरा मर जाता हूँ.
.
-- © बख्त फ़क़ीरी "देश रत्न "

Comments

Popular posts from this blog

Ek Sher

मैं तुम्हें पाना नहीं अपनाना चाहता था।।