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Showing posts from March, 2015

शहर में सब होता है बस वक़्त नहीं होता.

शहर में सब होता है बस वक़्त नहीं होता. अलकतरे वाले सड़क पे दरख़्त नहीं होता. नया उसूल नये कानून नयी-नयी रिवायतें हैं. स्कूल का मास्टर भी अब सख्त नहीं होता. सारा बाज़ार खरीद लाते अपना घर सजाने को. गर लुटने को ये दिल कमबख्त नहीं होता. ये सिकंदर मिज़ाजी तो हादसों की दौलत है. शाहजहानाबाद का हर फ़क़ीर बख्त नहीं होता.  -- © बख़्त फ़क़ीरी 'देश रत्न'

मैं मर्द हूँ और मुझे अपने होने का गर्व है।

मैं मर्द हूँ और मुझे अपने होने का गर्व है। मेरा बलात्कार करना बंद करो अब। तुम्हारे आँचल में जगह हो तो मुझे पनाह दो। मैं सालों से सोया नहीं तुम्हारी फिक्र में। - © बख्त फ़क़ीरी "देश रत्न " (वर्ष 2012 की आखिरी नज़्म)

Ek Sher

बादशाह था बशीर हो गया. सुना है वो फ़क़ीर हो गया.. -- © बख्त फ़क़ीरी "देश रत्न "

मैं तुम्हें पाना नहीं अपनाना चाहता था।।

तुमसे पहले भी कई किरदार आकर चले गए। मेरी दोशीजगी पे  हुस्न के धब्बे लगाकर चले गए। तुम्हारी फितरत से तुम मजबूर हो। और मेरी आदत से मैं। पर इस लेन देन के सौदे के दरमयान तुम ये समझ ही नहीं पाए - मैं तुम्हें पाना नहीं अपनाना चाहता था।। - © बख्त फ़क़ीरी "देश रत्न"

सच -- (c) बख्त फ़क़ीरी "देश रत्न"

1. अखबारों में नहीं छपते किस्से हमारे। मेरी कहानी के सब किरदार सच्चे हैं।। 2. कारवां मीलों पीछे छुट जाते हैं। सच का सफ़र बहुत तनहा होता है। 3. शहंशाहों से तकरार होती है। सच की तबियत खुद्दार होती है।। - © बख्त फ़क़ीरी "देश रत्न" The above shers are  dedicated to the Bravest of Brave The Great Martyr Subhash Chandra Bose.